🌹🌹 स्वामी प्रभात 🌹🌹
🚩 *मारुतीची प्रार्थना* 🙏
नारायणी पर्वती अंजनीने तप केले।
भोळ्या शंकरे वरदान दिधले।
स्वयं रुद्र प्रकटले संतान होऊनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।१।।
पवनाने कर्णरंध्री प्रकटुनी।
अंजनीस देउनी आशिर्वचनी।
वातात्मज नाम झाले त्रिभुवनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।२।।
पुत्रकामेष्टी यज्ञ दशरथे करुनी।
आविर्भाग ज्याचा घारीने पळवुनी।
ओंजळीत पडला अंजनीच्या शिवप्रसाद म्हणुनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।३।।
चैत्र शुध्द पौर्णिमेस भल्या पहाटे।
रविबिंब नुकतेच प्राचि वर उमटे।
जन्मताच झेपावला रुद्र गगनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।४।।
फळ समजुनी सूर्यास भक्षीण्या निघे।
बालकास त्या सुर्ये ताडीले वज्र प्रहारे।
खूण ती आहे हनुवटीवर अजुनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।५।।
केसरीनंदन तो पूर्ण महाविर।
पालन करुनी आजन्म ब्रह्मचर्य।
सप्तचिरंजीवात आहे ख्याती अजुनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।६।।
प्रभू रामचंद्रांचा हा दास एकनिष्ठ।
असे दास्य भक्ती ज्याची उत्कट।
शोधिली सीता करी लंकादहनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।७।।
घेउनी वानरसेना करी लंका चढाई।
श्रीरामदूत म्हणुनी करी दशाननापुढे शिष्टाई।
अलौकिक बळ,परी भक्ती प्रभुचरणी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।८।।
शक्ती लागुनी मूर्च्छित पडे सौमित्र।
संजीवनी आणण्यास निघे पवनपुत्र।
आणूनी पर्वतराज देई लक्ष्मणास संजीवनी।
तं महारुद्र अहं नित्यं स्मरामि।।९।।
लंका विजयात रामास सहाय्य केले।
बिभीषणास लंका देउनी तोषविले।
परी तो वसे सतत प्रभुरामचंद्र चरणी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।१०।।
या महारुद्रास मी जपतो नित्य म्हणुनी।
बल, शक्ती, ओज लाभे त्याचे दर्शनी।
तुम्ही ही व्हा लीन त्याचेच चरणी।
स्मरा स्मरा हो नित्य सुत केसरीअंजनी।
तं महारुद्रम् अहं नित्यं स्मरामि।।११।।
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